आलोचना >> कालिदास की लालित्य योजना कालिदास की लालित्य योजनाहजारी प्रसाद द्विवेदी
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कालिदास का स्थान भारतीय वाङ्मय में ही नहीं, अपितु विश्व-साहित्य में अप्रतिम माना गया है। उनके काव्य में उपमा का वैशिष्ट्य विलक्षण है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इस पुस्तक के निबंधों में कालिदास के काव्य का विशद विवेचन करते हुए उसके गुणों पर मौलिक प्रकाश डाला है। कालिदास के साहित्य में अवगाहन कर अमूल्य मणियों को खोज निकालना साधारण कार्य नहीं है। द्विवेदी जी ने यह असाधारण साध्य कर प्रकाण्ड पाण्डित्य का परिचय दिया है कालिदास के काव्य की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म विशेषता को पण्डित जी ने पूर्ण कला-कौशल के साथ उपस्थित किया है। सर्वत्रा श्लोकों के उद्धरण देकर उन्होंने महाकवि की लालित्य-योजना को उजागर कर दिया है।
कालिदास के काव्य का रसास्वादन करनेवाले विद्वानों को ‘कालिदास की लालित्य-योजना’ पढ़कर अपनी सुखानुभूति द्विगुणित करने का लाभ सहज ही प्राप्त होगा। कालिदास भारतवर्ष के समृद्ध इतिहास की देन हैं। स्वभावतः उन्हें विरासत में अनेक रूढ़ियों की प्राप्ति हुई थी। धर्म, दर्शन, कला, शिल्प आदि के क्षेत्र में अनेक रूढ़ प्रतीक साधारण जनता में बद्धमूल हो चुके थे। इसलिए उन्होंने भी बहुत-सी रूढ़ियों का पालन किया है। जब तक प्रतीकों का अर्थ मालूम रहता है तब ते वे ‘रूढ़’ की कोटि में नहीं आते, क्योंकि वे तब तक प्रयोक्ता के अनुध्यात अर्थ का प्रक्षेपण ग्रहीता के चित्त में करते रहते हैं। दीर्घकालीन प्रयोग के बाद उनका मूल प्रयोजन भुला दिया जाता है और बाद में उन घिसे-पिटे प्रतीकों का प्रयोग रूढ़ अर्थ में होने लगता है।
कालिदास ने अपनी रचनाओं में काव्यगत और नाट्यगत रूढ़ियों का जमकर प्रयोग किया है। उनसे छनकर ही उनकी स्वकीयता (ओरिजिनैलिटी) आती है। और यदि हमें कालिदास के उपादान-प्रयोग की कुशलता की परीक्षा करनी हो तो इन रूढ़ियों की जानकारी आवश्यक हो जाएगी। यहाँ इस प्रकार के प्रयास में पड़ने की इच्छा नहीं है। वह एक जटिल अध्ययन-प्रक्रिया की अपेक्षा रखती है। यहाँ प्रसंग यह है कि कालिदास उपादान की प्रकृति के निपुण पारखी हैं। रूढ़ियों का मान उनके मन में है अवश्य, पर उपादान के उपयोग में उनकी स्वकीयता प्रशंसनीय है।
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